सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

mila jo khat muje!

.valentine डे हर बार की तरह आया और चला गया.. लेकिन मुझे मिला ख़त अब भी मेरी यादों में ताज़ा है. सुना था की प्यार में चाँद किसी को खुबसूरत लगता है तो कुछ को तनहा लगता है लेकिन  मुझे पहली बार चाँद मासूम दिखा. जिसमे कोई बनावटी पन नहीं था मै उस दिन उसके आर पार देख सकती थी कितनो को ही कहते सुना था .. सच्चे प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती, उसे शब्दों में  व्यक्त नहीं किया जा सकता आज देख भी लिया. साथ साथ ये भी समझ गई की valentine डे सिर्फ  दो प्यार करने वालों का त्यौहार नहीं है बल्कि ये उस हर इंसान के लिए है जो किसी दुसरे के प्रति आदर, लगाव और प्यार रखता है. ये माता पिता भी होसकते है , भाईबहन, दोस्त और जानवर भी. इनसबको किसी न किसी रूप में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ापाते हैं.
 -ख़त जो मुझे मिला 
 अगर सभी प्रेम पुजारी बन जाए तो किसी धरमपुजारी की जरुरत हमे कभी नहीं पड़ेगी. बताती चलूँ की ये ख़त मुझे पांच साल के नन्हे से बच्चे से मिला है जिसने सिर्फ कुछ लकीरों से वो सब कह दिया जिसे लोग पता नहीं कितनी राते सोचने और रिहर्सल करने में बिता देते है. इसमें कोई बनावटीपन नहीं है, मन की सच्ची भावनाएं छिपी हुई है ये किसी reply की मांग नहीं करती बस  देती रहती है. हमारे यहाँ प्रेम का रिश्ता बहुत पुराना है .. सूरदास को कृष्ण की परछाई से प्रेम था, रहीम को ब्रिज की उस हर चीज से जो कृष्ण से जुडी थी, कबीर सतगुरु प्रेम में भीग चुके थे तो मीरा को उनके विरह  से ही प्रेम था. किसी को प्रेम दया और क्षमा  करना सिखाता है .. जिसमे इंसान के सात खून माफ़ कर दी जाते हैं कुछ को ये इमली से खट्टा लगा तो किसी को मिश्री से भी मीठा. सूफी संतों ने खुदा की मौसिक़ी में दीन को ही भुला दिया. हम कह सकते है  "जाकी रही भावना जैसी प्रेम की मूरत तिन देखि तैसी ". प्यार में वो ताकत है जो पूरी दुनिया को एक कर दे प्रेम की गली इतनी बड़ी हो जिसमे पूरी दुनिया समाजाए और दुनिया की सारी परेशानियां बिना खून बहाए ही खत्म होजाए बशर्ते ये प्यार बचपन के प्यार की ही तरह मासूम बना रहे. 

chehrapuran

बड़े दिन बाद घोंचू से मिल रही हूँ. क्यों रे घोंचू चेहरा बड़ा उतरा लग रहा है? बात का हुयी? घोंचू- जब से दूसरों का चेहरा पढना जाना है, खुद के चेहरे की रंगत बिगड़ गयी  है. अरेचेहरा काहे पढ़ते हो .    
 सीधे दिल में उतर जाओ. घोंचू- आसान काम थोड़े ही था चेहरा पढ़ लेना. ऐसा लगा जैसे लोकतंत्र आ गया पकिस्तान में ,इंडिया जैसे. मासूम चेहरा और निगाहें फरेबी मुझसे  काहे फेंकते हो? अच्छा बता- २जी वाले चेहरे पे क्या-क्या लिखा है? झट से बोला- राडिया लिखी है , राजा लिखा है, ,उसकी सारी करम कहानी लिखी है. कहूं -कहूं तो टाटा और अम्बानी भी लिखा है.ए तेरी तो.   आखें फटी की फटी रह गयी इस जनता तबके के  घोंचू पर.मन ही  मन सोचा नज़र लगी राजा तोरे बंगले पे.ये घोंचू जाने कब  से अन्त्योदय योजना में पड़ा है. इतना इंतजाम कार्यो निकलने का नाम ही न लेवे है. पिछले दिनों तो हद कर दी इसने.  एक शो रूम में घुस के बी. पी. एल. कार्ड पे नैनो  मांग लियो. ये भी नहीं सोचा की साइकिलें  किसके भरोसे बिकेंगी. मैंने फिर पूछा- cwg के चेहरे..... बीच में ही बोल पड़ा- चोर -चोर चिल्ला के कजरी सुनाऊँ , जैसे चाहो वैसे बताऊँ . मेरे कान में फूंका - कलमाड़ी लिखा है. यकीन अब नहीं हो रहा था . सोचा चलो सीता मईया की की तरह इसकी परीक्षा लेती हूँ. बता तो ज़रा- बोफ़ोर्स वाले पे क्या लिखा था? क्वात्रोची लिखा था? दलाली लिखी थी ,राजनीती की गन्दी कहानी लिखी थी. उसके बाद तो मैं बस नाम देती गयी. चिट्ठे वो एवें खोलता चला गया. वैसे ही जैसे दूल्हे की पोस्ट बोलो दाम bazar  के हिसाब से फिक्स हैं. भोपाल गैस कांड- एन्डरसन लिखा था . गोधरा दंगे -मोदी लिखा था. बाबरी मस्जिद- विहिप लिखा था, अडवाणी लिखा था, हिन्दू - मुस्लिम वोट बैंक की कहानी लिखी थी. धनस्याम के चेहरे पे- पूरे के पूरे अट्ठारह नाम गिनायो घोंचू ने .धुपेलिया टाइप, मेहता टाइप, हंसमुख गाँधी टाइप ...........  बहुत बक -बक कर रहा है. चवन्नी भर का सवाल बता.सरकार के चेहरे पे क्या पढ़ा? इतना सुनते ही घोंचू चारों खाने चित्त. ज़मीन पे बेसुध पड़ा था. काटो तो खून नहीं. घाट - घाट का पानी उसके चेहरे पे छिड़का होश न आया .एक और घोटाले की कहानी पूंकी उसके कान में .तब जाके होश आया. उठते ही बोला - ये सब  और इससे कहीं ज्यादा सरकार के चेहरे पे लिखा है........         

सोमवार, 21 फ़रवरी 2011

no one killed gaaliyan

ए साला अभी अभी हुआ यकीन की गालियों को कोई मार नहीं सकता और न ही समाज में उन पर कोई पाबन्दी लगाई जा सकती है. ये हमारी जन्दगी में कुछ इस कदर रच बस चुकी हैं के इनके बिना ज़िन्दगी wife बिना लाइफ लगेगी, हमारे रिश्ते इन्ही पर टिके हुए है. भला कोई पत्निशुदा आदमी अपने साले साहब और साली साहिबा के बगैर ससुराल की कल्पना तो कर के देखे गालियों के बिना शादियों की रस्मे अधूरी हैं द्वार चार पर जब तक औरतें वर पक्ष की सात पुश्तों को न न्योत दे कार्यक्रम आगे नहीं बढ़ता शादियाँ औरतों को गरियाने का सामाजिक मंच देती हैं. राम चरित मानस से ले कर ये साली जिंदगी गलियों का विकास वैसे ही बताती हैं जैसे निरमा वाशिंग पावडर से शुरू हुआ सफ़र सर्फ़ एक्सेल क़ुइक्क वाश तक आ पंहुचा है, जो किसी भी पुरानी गाली को नई से धो डालने को तयार है. situation और औकात के हिसाब से गालियों का बड़ा शब्दकोष बन चूका है.एक दौर में तुलसी दास गालियों को कुछ इस तरह व्यक्त करते हैं " दुलहिन गावही मंगल चार " वहा से शुरू हुआ मंगल चार आज हमारे आचार विचार में पहुच चूका है, bolywodiya गाली ने इनका समानीकरण कर दिया है. जिन गालियों को कल तक मुह से कहने तक में शर्म आती थी, गानों ने उन्हें गुनगुनाने लायक बना दिया है .1974 में आई फिल्म sagina का गाना साला मै तो साहब बन गया से इसकी शुरुआत हुई 1994 में मै खिलाडी  तू अनाड़ी के " साला उफ़ माँ एला अगो गोरी आली आली " ने एक नई शब्दावली हिंदी को दी फिर राग दे बसंती 2006 के गाने "ए साला अभी अभी " ने युवाओं की नहीं जुबान को प्रसिद्धि की उचायीं तक पहुचाया. ज़िन्दगी और सिस्टम को नए ढंग से आमिर का ये नया अंदाज़ सभी को खूब पसंद आया , बोलीवूद और गालियों का रिश्ता कुछ कुछ जीजा साले जैसा है अगर इनमे से कोई एक भी एक दुसरे को नज़रंदाज़ किया तो goalmaal returns की तरह   ये" साले काम से गए". कहने का मकसद सिर्फ इतना है की तब न कोई गालियों को पूछेगा और न ही फिल्मे चलेंगी . फिल्मों में गालियाँ वैसी ही हैं जैसे भारतीय पकवानों में चाट मसाला. तभी तो जाने तू जाने ना के director को कहना पड़ा "papu cant danse sala " . कहा जाता है की गालियों का भी अपना समाज साश्त्र है सिर्फ गालियों को बकने और सुनने के सिवाय अगर समझने की कोशिश की जाये तो पाते हैं कि सभी गालियाँ स्त्री सूचक है और इनको बकना मर्दानगी मानी जाती है. हमारे समाज में आधी आबादी के  सम्मान और स्थिति को समझने का सबसे बेहतर जरिया ये गालियाँ है. अगर फिल्मे "no one killed jessika "क़ी तरह लड़कियों को भी जिसकी  जूती उसी के सर मारने का मौका दे रही है तो समझ में नहीं आता क़ी आखिर प्रॉब्लम कहा है साला. जानती हु प्रॉब्लम तो होगी ही क्योकि हमारे दबंग समाज क़ी " आदत ससुरी बड़ी कमीनी है" . डबल गेम  सदियों से खेलता आया है. वास्तव में सोच और परम्परों के मामले में ये लंगड़ा है. ये कितना भी सुधरने का दावा कर ले लेकिन इसके स्वाभाव क़ी राजनीती हम सब जानते है, लड़किओं के मामले में ये हमेशा से ही फेकता आया है .. साला ! 

शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

agar main kahoon...........

आज दूसरी बार अपने बारे में लिखने बैठी हूँ तो बड़ा कम्फर्टेबल फील कर रही हूँ. ठीक वैसे ही जैसे नयी नवेली दुल्हन को मुंह दिखाई के बाद महसूस होता है. पिछली दफा मैंने अपनी कहानी तारीख मांगते हुए छोड़ी थी. ब्रेक के बाद मेरी जिंदगी का एपिसोड शुरू हो चुका है. सब कुछ बड़ा सुहाना सा लग रहा है ,क्यों न लगे आज पहली तारीख जो मिल गयी है. इसलिए मीठा खाने का मन भी कर रहा है ,लेकिन मेरा मीठापन थोड़े दुसरे किस्म का है. जब से तारीफ का बबलवा खाया है (अगर यही ख़ुशी है तो )फूल के कुप्पा हो गयी हूँ. लेकिन मुझे पता है की ये adapted होती हैं ज्यादा दिन टिक नही पाती. इसलिए दिमाग की बत्ती पहले से ही जला के रखी है. लीजिये एक और खूबी बता दी अपनी मुझे मोटिवेशन की सख्त तलब लगती है. इसके बगैर मैं बिना पेट्रोल की बाईक हूँ .लेखन के क्षेत्र में अभी मैं मुसाफिर हूँ, मेरा कोई पता ठिकाना नही हैं. बस लिखते जाना होगा . लिखने से और आलोचनाओं से दोस्ताना रखना पड़ेगा . दोस्ताना से याद आया कि पापा आपकी लाडली बिगड़ गयी है. वैसी नही रही जैसी आप सोचते थे. सीधी -साधी रबर कि गुडिया जैसी ,अपनी रास्ट्रपति की तरह. वो सोचने लगी है,महसूस करने लगी है. आप तो समझ ही नही पाए. महसूस करना तो उसने  आठवी से ही सीख लिया था . गलती आपकी भी नही है. आप पुरानी फिल्मो  के पिता  प्राण  या  प्रेम  चोपड़ा  ही बने  रहे . बेटा होती तो पूत  के पांव  पलने  में जरूर  दीखते . आप दुनिया  के सबसे अच्छे  पिता  है, बेटे  हैं , इंसान हैं  .अगर ऊपर  वाले  जैसी कोई चीज  है ,तो आपके  जैसे पापा हर  किसी  को मिले  . लेकिन जानती  हूँ की ऐसा  नही हो सकता . क्योंकि  कमियां  और खूबियाँ  हमें  २ इन 1 में मिली  हैं. देखिये  न कितनी  बुद्धू  हूँ ? धर्मगुरु  टाईप  के लोगो   की तरह बस बोलती  चली  जा  रही हूँ. आप सब का ख्याल  तक  नहीं  रखा  . पता तो चल  ही गया  होगा की मैं विद्रोही  भी हूँ . पारले जी का एक फ्लावर  नही चलने  का ये मतलब  नहीं  की पूरा  प्रोडक्ट  ही ख़राब  है. मम्मी  तुम  हम सब के लिए  ऐसे  नेमत  हो की न चाहते  हुए भी आपका  जिक्र  आ   ही जाता  है .जैसे इंडिया  - पकिस्तान  के क्रिकेट  मैच  में advertisement .      
मम्मी तुम नहीं जानती की तुम चाँद हो या आफ़ताब हो, मेरे लिए तो तुम ममता की वो शराब हो जो मोहिनी बने विष्णु की तरह राक्षसों से धोका नहीं करती, ममता के मयखाने में सभी बच्चो को बराबर दुलार मिलता है जिसे पी कर हम सभी गमो की वाट लगा देते हैं. परिचि फिल्म सही कहती है की दुलार की दावा किसी हस्पताल में नहीं मिलती. माँ तुम मेरे जीवन का वो सॉफ्टवेर हो जिसे कोई हैक नहीं कर सकता. तुम हमेशा कहा करती हो की मई पापा की तरह कुशील(जिसकी आँखों में दया न हो ) इमोशंस की अल्पन्लेबे मुझमे नहीं, लेकिन देखीए न आज ऊट को निहुरे निहुरे मैंने चुरा ही लिया. याद है जब दीदी ससुराल चली गई थी तो मुझे पहली बार कित्चें ले गई थी रोटियां बनाना सिखाने के लिए, तुमने तो बेलन से रोटियां गोल अर्ना सिखाया था लेकिन मैंने दुनिया वहीँ नाप ली थी. हिंदी फिल्मो की माँ की तरह हम तुमसे बिचड़े तो नहीं और न ही आपने हमे पालने के लिए मजदूरी की , बल्कि उस्ससे भी ज्यादा किया. स्कूल के दिनों में जब टिफन बॉक्स खोला करती थी, तो आपकी आधी जगी आधी खोई नींद भी खुल जाया करती थी. गीली रोटीओं उन्दाली जम्हाई याद आती थी . मम्मी अक्सर आज भी मई सब्जी में धनिया डालना भूल जाती हूँ जब तक तुम याद न दिलाती हो. आपने ना रहने पर खुशियाँ तो होंगी पर उन्हें गार्निश करने वाला कोई न होगा. हम सबकी आदत होती है इमोशनल अत्याचार करने की .. जो अब तक मई कर रही थी आप सब पर. मेरी कहानी में intermission हो चूका  है . पहला झटका तब लगा जब देहरादून की SSB में पहले दिन ही आउट हो गई थी . हमेशा से ही आसमान में उड़ना चाहती थी लेकिन वक़्त ने किया ऐसा सितम , बूमर रहा न बबलगम. जिन्दाही तेरे साथ सफ़र करने मैंने सीख लिया है. ये मत समझ की मै हार गई, चेन पुलिंग करके मै अपनी पसंद की किसी भी रह पर धीरे से उतर जाउंगी टी टी  की तरह तुझे भी पता न चलेगा की ट्रेन किसने रोकी थी. आप सब ये न समझिएगा की मेरी कहानी ख़तम होचुकी है . बताया था न की intermission हो चूका है अगली बार फिर मिलूंगी टी व् सीरियल के करक्टेर की तरह प्लास्टिक सर्जरी वाले नए चहरे के साथ.
     * इस कहानी का कोई भी पत्र काल्पनिक नहीं है यदि किसी को भी इन घटनाओ या भावनाओ से कोई जुडाव महसूस होता है तो आपके कमेन्ट सहर्ष स्वीकार है.

 
 है ज्यादा दिन टिक नही 

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

                                   Ganga maiya me jab tak pani rahe……….
 गंगा  मैया  में  जब  तक  पानी  पानी  रहे , मेरे  सजना  तेरी  जिंदगानी  रहे . हरिद्वार  कि  धरती  पर  5 oct 2010 को  कदम  रखते  ही  यही  वो  गाना  था  जो  हर  कदम  पर  सुनने  को  मिला . पता  नहीं  वहां  के  सरे  सजना  मौत  से  जूझ  रहे  थे  कि  नहीं  लेकिन  सजनियों  को  जूझते   जरूर   देखा . यही  तो  खसियत  है  भारतीय  सजनियों  के , कि  वो  बड़ी  नादाँ  हैं . अपने  सजना  को  ठीक  तरह   से  समझ  नहीं  पाती . दुसरे  ये  यह  नहीं  जानती  कि  जिस  गंगा  मैया  पे  इनको  इतना  भरोसा  है, वो  भी  एक  दिन  मिस्टर  इंडिया  हो  जाएँगी . गंगा  स्नान  के  लिए  भीड़  ऐसे  जैसे  किसी  शोपिंग  माल  में बम्पर   सेल  लगी  हो . सुबह  चार  बजे  से  ही  पापों  को  पुण्य  में  बदलने  का  सिलसिला  शुरू  हो  चुका  था . उजाला   होते -होते ऐसा  लगा  कि  मुझे  छोड़कर  हरिद्वार  कि  धरती  के  सभी लोग   पवित्र ho  चुके  हैं . जैसे  बॉलीवुड  कि  शहरी   नायिका  गाँव  देखक  कर  हैरान  होती  है , मेरी  हालत   भी  घाट  पर  पहुँच  कर  वैसी  ही  थी . पहला  दर्शन  घाट  पर  वसूली  करने  वाले  सरकारी  गार्ड  से  हुआ . जो  बेचारे  पहली   बार  पाप  धुलने  आए  थे , वो  फंस  रहे  थे  और  जिनकी  आदत  पड़  चुकी  थी  वो  उसे  भी  गोली  टिका  रहे  थे . जैसे  हम  एक  देवता  को  चढ़ावा  चढ़ा  कर  दुसरे   को  पेंडिंग   में  डाल  देते  है . गंगास्नान  करते  समय  लोगों  को  उसकी  पवित्रता  पर  इतना  भरोसा  था   जैसे  कि  उन्हें  नहाने  के  लिए  मिनरल  वाटर  मिल  गया  हो . कुछ  भाई  लोग  साथ  में  लायी  गयी  चीजो  पर  पानी  छिड़क  कर  पवित्र  करने  के  साथ -साथ  कपडे  भी  धुल  रहे  थे . क्यों  न  धुले , ऐसी  सफेदी  और  स्ल्हुधता  कि   गारेंटी  तो  रिन  सुप्रीम   भी  नही देता  . मै गंगा   स्नान  के  बारे  में  सोचती  कि  इससे  पहले  एक  दृश्य  ने  मेरा  इरादा  बदल  दिया . पास  में  पड़  इक  पागल और  बीमार  आदमी  के   पास  से  लोग  नाक  पर  रुमाल  रखकर  ऐसे  गुजर  रहे  थे  जैसे  किसी  अमेरिकन  को  मुंबई  कि  झुग्गियों  में  पहुंचा  दिया  गया  हो . लोग  गंगा  को  देवी  समझते  हैं . एक  दुबकी  लगा  कर  सरे  पाप  धो  लेने  का   दावा  tide   की  सफेदी  की  तरह   करते  हैं . पूजाघरों  में  गंगाजल  का  होना   जरउरी  मन  गया  है . अगर  मरते  समय  इसकी  दो  बूँद   भी  मिल  जाये  तो  ऐसा  मन  jata  है  की  पस्सेंगेर  क्लास  के  आदमी  को  a.c. क्लास  ka  टिकेट  मिल  गया  हो . बॉलीवुड  नेब  ही   गंगा  लगायी  हैं . सत्तर  के  दशक  में  ‘गंगा  तेरा  पानी  अमृत ’ थी . दस  साल  बाद  राजकपूर   की  नजरों  me ‘राम  तेरी  गंगा  मैली  हो  गयी ’.         
                                                                            मुझे  नही  पता  की  हम  ऐसे  क्यों  हैं ? जिसे  माँ  कहते   भैन  उसे  मैला  धोने  वाली  क्यों  बना  दिया . गंगा  किनारे  लोग  हलके  (shaoch)  हो  लेते  हैं . क्या  हम  अपने  पूजा  घरों  में  भी  ऐसा  करते  हैं ? गंगा  अज  नदी  नही  नाला  बन  चुकी  है . हमारी  आस्था  और  तौर  तरीको  पर  कोई  फर्क  नही  पड़ेगा ,  जैसे  बड़े  की  जगह  मिनी  लक्स  के  आने  पर .

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

MAIN AUR MERA JEEVAN

                     
                                 
Mere jeevan se kahi apko ritik roshan ki film lakshya ki yaad to nahin aa gayi.jisme unke sath desh ke sipahi aur nayika ka man tha. Vaise mere liye bhi ‘tenshan not’kyonki is bar mere sath poore unees log hain jo apne bare mein likh rahhe hain. Hamein apni chhatri ke chhed kabhi dikhayi nahi dete aur apni bat seedhe seedhe kah nahi pate.jaise ki meri himmat dekhiye apni baat kehne ke liye kitne udahran dene pad rahe hain khud ko batane ke. Lakshya film ki tarah hi mere jeevan ka bhi udyeshya hai au rise pane ke liye maine kayi uddyeshya tay kiye hain. Theek usi tarah jaise apna idea dene se pahle dosre ke ka idea churana padta hai, lax ke chakkar mein hamam se nahana padta hai. Ab dekhiye na yahan bhi kanfyusion hai ki mujhe nahi pata ki mera lakshya kya hai? Nayk vala ya nayika vala.vala shabd se yad aya ki ham yadasht ke thoda kamjor hote hain aur chejon ko bhula dene ki hamare andar gajab ki ichhaashakti hoti hai. Chahe vo achhi ho ya buri. Chahe vo bhagat singh ho ya ajad, bofors ho ya adarsh ghotala, Bhopal gais kand ho ya phir too gi ispectram.cheejon ko yaad rakhne ke liye vala shabd ka prayog hak ke sath karte hai jaise, Mumbai ka dibbevala, three idiot film vala, kaumanwelth games vala, ya phir kaledhan vala. Isliye mujhe aise yaad rakhen sandhya apne bare me kuch na bataa pane vali.
                                                                                     Hame apne samaj se har cheej jode me mili hai sath me canditions aplai.jaise t.v. serils ke sath saas bahu,riyaliti shoj ke saath rakhi sawant,dodh ke sath malayi,dahej ke sath lugayi aur achhayi ke sath burayi. Mere andar bhi kuch achhi baten aur kuch kharab. Vaise apne ladke ko kana koi nahi kahtalekin mujhe apni kmiyan swekarne me koyi jhijhak nani hoti.mujhe sharm is bat se nahi ati ki falan cheej mujhe nahi pata,sharm ki bat to tab hogi jab main ise sekhne ke liye taiyar na  rahu.itne bade falsafe ka nichod yeh hai hai ki apne ladke ko kana nahi kahongi to ilaj kaise hoga,meri chhatri ke chhed aur paiband mughe pata hone chahiye. Hindi filmo ki tareh kahani me twisd aa gaya tha.ham e sabko pata hai ki dimag lagane vali cheje nato hame likhni ati hai aur na to samajhni. Pichli bar ham discount par the. Ab ye bat aur hai ki tyoharon ke mausam ki tareh mujhe kharab adte choot mein adhik mili hai. Lekin yakin to karma padega jaise ki filmo me ham happy ending ki adapt chod rahe hai. Ham aise hi hai ye to manna hi padega, vaise hi jaise mai hoon.koyi teesmarkha nahi so simpal ‘human being’. Teesmarkha se pata chala ki hamari ek aur adapt hoti hai- har baat ko do tarike se samaghne ki. Jaise ki teesmarkha se apko kuch aur hi yad aa gaya.agar ye bat main a batati to to pakad me bhi na ani thi apni sheela ki jawani ki tareh.aj jab munniyo ki badnami ko hamare samaj ne khule dil se swikar kar liya hai to jarori yeh haqi ki ham bhi apni kamiyo ko usi khulepan se swekar kare. Yahi to khasiyat hai hamarik ki apne kam ki cheje ham dhondh hi lete hai. Ham bhartiya duniya sabse khush rehne vale log hai.sabse kam sansadhno me,kyoki angrejo ke jane ke bad hamare pas hamesha se hi thoda raha hai aur thode ki hi jarorat mehsos hoti hai. Shayad iseliye mai ashavadi ho. Bhai doj par sunayi jane vali kahani ki “kani chiraiya”ki tareh ham sabme apne bare me kuch na kuch chipane ki adapt hoti hai jaise kani chiraiya apni ankh me chawal ka dana chipati hai. Bhai aise kaise de de apna sir sabhi ko khrlne ke liye.ye to bvahi wali bat huyi ki apna hi ghar phonk ke jamalo tamasha dekhe. Ham ham hai to itni ram kahani bhi kam hai. Isliye my lord mujhe tarekh pe tarikh di jaye jiski peshi mere marne ke bad bhi chale bhartiya mukadmo ki tareh. Aisa isliye kyonki mera jiwan sirf  itne par hi khatam nahi ho jata .t.v. serials ki tareh mujhe bhi break ka mauka diya jaye. Baki agle ank me…………..
Vaidhnik chetavni- uprokt sabhi kamiyon aur khobiyo ke visheshadhikakar surakchit hai,.

Kitaben bahut si padhi hongi humne!

लखनऊ विश्वविद्यालय ०८ ०२ २०११
किताबें जीवन कि सच्ची दोस्त होती है इसके लिए किताबो को पढ़ते रहना पड़ता है. पुस्तक प्रेमियों को एक ही जगह पर विभिन्न प्रकार कि पुस्तकें कम दामो में uplabdh करने का काम लखनऊ विश्वविद्यालय में नेशनल बुक ट्रस्ट की or से लगाया गया rashtriya पुस्तक मेला कर रहा हैजो विद्यार्थियों के साथ साथ अध्यापको और महिलाओं को भी आकर्षित कर रहा है. prabhat प्रकाशन दिल्ली के स्टाल पर पाठक प्रसिद्ध  हस्थिओं की जीवनी और उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकें उपलब्ध हैं. नेशनल बुक ट्रस्ट के स्टाल पर शेख चिल्ली की किताबो के साथ साथ stationary और स्टिकर्स बच्चो की पसंद बने है.  संस्कृति संसथान दिल्ली ने धार्मिक पुस्तकों से ले कर ज्योतिषी शास्ष्ट्र पर भी किताबें है. इस्लामिक publications की हिंदी इंग्लिश कुरान युवाओं को सभी धर्मो को अपनी भाषा में समझने अक अवसर देती है.
          भा गए दादी माँ के नुसखे
नव्या बुक स्टाल पर दादी माँ के नुस्खो से ले कर ब्लड  प्रेशर कंट्रोल पर भी किताबें हैं. घरेलु नुश्खो की अपना कर कैसे छोटी बिमारिओं से बचा  जाए ये भी यहाँ की किताबें बताती है.
          "माँ मुझे किताब माँगा दो"
मुझे कहानिया चुटुकुले पढना पसंद है और मैंने "खों खों- भों भों" नाम की किताब ली है - अंकित, CMS .
          शिवानी बनी पहली पसंद
राज कमल प्रकाशन की सबसे अधिक बिकने वाली किताबें लेखिका शिवानी की हैं इसके आलावा गिरेन्द्र सारंग की वज्रांगी भी पठाको ne पसनंद की.

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

mai aur mera jeevan part 1

कितनी ajeeb बात है की हम जीवन भर अपने बारे में सोचते रहते है जिंदगी का हर छोटा बड़ा काम अपने लिए करते है. हम अपने ही सबसे अधिक करीब होते है, इसके बावजूद मुझे अपने बारे में लिखने क लिए इतना सूचना पड़ता है जैसे की बोलीवूद के फिल्मो के हीरो की तरह मुझे short term memory loss हो गया हो. मई कौन हूँ इस prashna  मुठभेड़ होते ही समझ नहीं आता की नाम बताऊ या पहचान सुरुआत कहा से करू? पैदा होने की तारीख बताऊ या जन्म स्थान. confusion ऐसा हो जाता है जैसे की शाहरुख़ बड़ा या सलमान. अब तक तो आप जान ही गए होंगे की मेरी अपनी कोई पहचान नहीं है. फिलहाल चलन क अनुसार, शुरुआत मई अपने नाम से करती हूँ, संध्या अर्थ सुबह की देवी या साँझ की देवी. अफ़सोस होता है की काश मई अस्सी के दशक में पैदा हुई होती और अमिताभ जी की तरह अपना परीचे दे पाती .. नाम विजी दीना नाथ चौहान, बाप का नाम दीनानाथ चौहान पता मंडवा. मुझे ऐसा लग रहा की आपको मेरा नाम कुछ खली खली सा लग रहा होगा ठीक वैसे की जैसे राम क बिना हनुमान, मुन्नी के बिना बदनाम और जाती के बिना नाम. अब तो आप जान ही गए होंगे की अपवाद छोड़ कर हम नाम के पीछे लगी जाती जैसी चीज से पहचाने जाते है, वैसे ही जैसे राहुल के पीछे गाँधी, मुलायम के पीछे यादव और बहिन के पीछे मायावती. यकीन मानिए मुझे अपने बारे में लिखें के लिए टी.व् सेरिअल्स के किरदारों  की तरह बार बार मर कर जीना पड़ा न जाने कितने चेहरे बदलने पड़े.
अपने बारे में लिखने बैठी हूँ तो ऐसा लगता है ओखली में सर दे maara हो .. कि कूटो. हमारे जीवन में धरम का बहुत महत्व है और पूरी जिंदगी कहै न कही उस्ससे प्रभावित रहते है, जब मुझे अपने बारे में लिखने का मौका मिला है तो ऐसा लग रहा है कि हनुमान कि तरह मुझे भी मेरी शक्ति याद दिला गई हो कि उठो और बता दो अपने बारे में नाम बता देने बाद ऐसा महसूस होरहा है जैसे हाथी निकल गया है बस पूँछ रह गई है. लेकेन पता है कि हनुमान जी ने पूँछ से ही लंका जला डाली थी और .. खुद कि पूँछ भी. चलिए shuruaat लंका vijay और नायिका से करते हैं .. यानि कि लक्ष्य. हिंदी फिल्मो में लक्ष्य नायिका को गुंडों से बचाना ही होता है पत्र और तरीका जो हो फिल्म का वाल्मीकि जो हो इससे पता चलता है कि सभी फिल्मो कि स्टोरी रामायण से चुराई गई है. बात करते करते लक्ष्य से भटक जाना हमारी खूबी है जैसे कि मेरी खूबी अभी आपको पता चली.
आगे जारी hai

शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

fool tumhe bheja hai khat me

फूल तुम्हे भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है.यह तरीका होता था आज से कुछ साल पहले प्रेमी के लिए,प्रेमिका के ख़त लिखने और मानाने का .पता नहीं पन्ने जाया हो जाया करते थे दिल का हल लिखने में.फिर कितनी ही मुश्किल से दो चार होता हुआ ख़त प्रेमिका तक पूछता था.उस पर भी घर की चची भाबी का पहेरा.हाथ तक पूछे तो उसे पड़ने के लिए जाने कितने जातां करने पड़ते होंगे.और किसी के आने भर की आहात से न जाने उसे कितनी बार उसे किताबे और तकिया के नीचे छुपाना पड़ता होगा.ख़त के साथ भेजा गया फूल बिलकुल दिल की ही तरह सम्हालकर सैट परतो में रखा जाता था. दूसरी ओर प्रेमी कई बार महीने भर इंतजार करते थे.गलती से भी अगर प्रेमिका का ख़त घर के किसी समजदार बच्चे के हाथ लग जाता था तो जेब dheli ही नहीं खली होने की नौबत तक आ जाती थी. इन बच्चो के जेब खर्च उस समय इसी तरह पुरे होते थे.ख़त और फूल की khushbu हमेशा ताज़ी ही रहती थी बिलकुल उनमे बसी यादो की तरह.आब न तो ख़त लिखने का craz है और न तो प्रेमी प्रेमिकों में इतना धर्य की वो महीनो इंतजार कर सके.अब ईमेल और messages का जमाना है. पहले उहने बताना भी नहीं अत छुपाना भी नहीं आता था लकिन आज कल के प्रेमी प्रेमिका मेसेज मेसेज खेल कर सभी की आखों में धुल झोक दिया करते है. बिहारी के प्रेम मिलन की तरह "कहत-नटत रिभुती जिजती-मीलती खिलातिना लिजायत, भरे भवनु को तो छोड़ो में पुरे समाज में मेस्सजू से करी लई बात".
                                                                     ईमेल से भेजे गए फूल के बसी होने या मुरझा जाने का खतरा मिट गया है.ईमेल और फूल की पूरी सुरक्षा है जवाब भी सेकंड्स में मिल रहे है. जाहिर है की इन इमेल्स ने प्रेमी प्रेमिकाओ को एक space दिया है. आज़ादी दी है खुल के जीने और भावनाओ को व्यक्त करने की. कागस के ख़त जैसी बात ईमेल में नहीं लकिन सच ये है की ख़त वाले प्रेमी में ईमेल वाली बात नहीं. वो प्यार के कागस पे दिल की कलम से ख़त लिखा करता था और ये कम्भाकत दिल ही निचोड़ कर रख देता है. वो सौ बार जनम लेकर प्यार की कसम खता था और ये न तो कह सकते है और न तो sah सकते है इतने प्यार और वादों को. वो लिखा करते थे जो उनकी याद में और ये ऐसी emotional atyachar से तौबा कर लेने में ही अपनी bhalai समजते है. तब की प्रेमिकाए कहती थी सजन रे झूट मत बोलो और आज की हिम्मत तो धेकिये इनकी, कहती है तू साला कम से गया.
                कुछ भी हो देश, काल ,मौसम और चरित्र बदले है लकिन ये भावनाए आज भी वही है. पहले भी जमाना सितम धता था और ये चुपचाप सहेते थे आज की aaishyio को चाँद की चूड़िया पहनने, डार्लिंग के लिए बदनाम होने और किसी के hath न आने की हिम्मत इन ईमेल ने ही दी है. भावनाओ की खुशबु वही रहती है बस उहने व्यक्त करने और समजने के तरीके बदलते रहते है.   
                  

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

m for munni s for sheela

मुन्नी और शीला समाज में सेलिब्रटी बन चुकी है, चोरी छुपे ही सही humne राम राम की जगह  मुन्नी बदनाम का जाप शुरू कर दिया है. मुन्नी शीला banner तले कुछ भी लिखा जाए हम सब पढ़ ही डालते है. जैसे कुछ ज्यादा की चाहत हमे LSD दिखाती है. तुच्छे किसम के लेखो को कोई पढता नहीं है तो सोचा, हम जैसो का उद्धार, सरकारी अफसरों का बंटाधार करने वाली आनंद्दैनी हमारी अपने श्री श्री मुन्नी और श्री ४२० शीला की शरण में चला जाए. देव दस की चन्द्र मुखी भले न जानती हो की उसपर हरा रंग किसने डाला? लेकिन मुन्नी अच्छी तरह जानती है की गाँधी जी किस ATM में है. बसंती गब्बर क सामने वीरू की जान के लिए नाचती है लेकिन आज की शीला,मुन्नी में बोल्डनेस है. मै तुलसी तेरे आंगन की फिल्म जैसे उन्हें ये नहीं पूछना पड़ता की वो अपने सजन की क्या लगती है इन्हें अपने DARLING के लिए बदनाम होने और नोट फॉर यू कहने में कोई गुरेज नहीं. इतनी पब्लिसिटी  बटोरने क बाद इनका केस सीबीआई को सौप देना चाहिए. ये जानते हुए की क़त्रोच्ची और बाकि केसों की तरह इससे भी हाथ धो बैठोगी. जैसे म.प में लडकियों को मोड़ी, राजस्थान में छोरी,गुजरात में डिक्री,केरल में चिन्नमा और पंजाब में कुड़ी कहा जाता है वैसे ही मुन्नी उ.प बिहार का प्रोडक्ट है. और हद कर आपने टिंकू जिया. दरअसल जिया बड़ी बहन को कहते है. मुन्नी शीला पर इतनी झीभ लपलपाने का मकसद एक छोटी सी घटना से जुदा है, मेरे पड़ोस में पांच चाय साल की दो छोटी लडकिय मुन्नी शीला नाम क गाने पे डांस कर रही थी. पूछने पर पता चला  की ये उन्हें बहुत पसंद है. बच्चो की दबंगई पे मुझे हैर्रत हुई. समाज की सदी गली सोच  को साइड लगा कर उन्होंने अपनी पसंद जो बताई थी कौनसी क्लास में है दोनों ये तो बतागाई लेकिन ए फॉर अप्प्ल और बी का मतलब नहीं समझा पाई. कुछ और पूछ पाती की उसके पहले ही दोनों ने म फॉर मुन्नी स फॉर शीला धोक डाला. सुनते ही समझ गई की नेक्स्ट GENERATION की सोच झिंगालाला. हमारे मीडिया में खबरे मौसम की तरह आती और CHHA जाती है. कभी IPL मौसम,घोटालो का मौसम, खाप का मौसम और बयान बाजी मौसम, इधर एक दो मौसम से मुन्नी शीला चल रहा है. बाकी मौसमो की तरह इसने भी अपने इरादे JAHEER कर दिए हैं. हमारे भाषा पंडितो और परंपरा के पुजारियो को इस पर सोचना ही पड़ेगा क्योकि GENERATION नेक्स्ट की DICTIONARY  में अब शीला मुन्नी आम हो चुकी है.