शुक्रवार, 4 फ़रवरी 2011

fool tumhe bheja hai khat me

फूल तुम्हे भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है.यह तरीका होता था आज से कुछ साल पहले प्रेमी के लिए,प्रेमिका के ख़त लिखने और मानाने का .पता नहीं पन्ने जाया हो जाया करते थे दिल का हल लिखने में.फिर कितनी ही मुश्किल से दो चार होता हुआ ख़त प्रेमिका तक पूछता था.उस पर भी घर की चची भाबी का पहेरा.हाथ तक पूछे तो उसे पड़ने के लिए जाने कितने जातां करने पड़ते होंगे.और किसी के आने भर की आहात से न जाने उसे कितनी बार उसे किताबे और तकिया के नीचे छुपाना पड़ता होगा.ख़त के साथ भेजा गया फूल बिलकुल दिल की ही तरह सम्हालकर सैट परतो में रखा जाता था. दूसरी ओर प्रेमी कई बार महीने भर इंतजार करते थे.गलती से भी अगर प्रेमिका का ख़त घर के किसी समजदार बच्चे के हाथ लग जाता था तो जेब dheli ही नहीं खली होने की नौबत तक आ जाती थी. इन बच्चो के जेब खर्च उस समय इसी तरह पुरे होते थे.ख़त और फूल की khushbu हमेशा ताज़ी ही रहती थी बिलकुल उनमे बसी यादो की तरह.आब न तो ख़त लिखने का craz है और न तो प्रेमी प्रेमिकों में इतना धर्य की वो महीनो इंतजार कर सके.अब ईमेल और messages का जमाना है. पहले उहने बताना भी नहीं अत छुपाना भी नहीं आता था लकिन आज कल के प्रेमी प्रेमिका मेसेज मेसेज खेल कर सभी की आखों में धुल झोक दिया करते है. बिहारी के प्रेम मिलन की तरह "कहत-नटत रिभुती जिजती-मीलती खिलातिना लिजायत, भरे भवनु को तो छोड़ो में पुरे समाज में मेस्सजू से करी लई बात".
                                                                     ईमेल से भेजे गए फूल के बसी होने या मुरझा जाने का खतरा मिट गया है.ईमेल और फूल की पूरी सुरक्षा है जवाब भी सेकंड्स में मिल रहे है. जाहिर है की इन इमेल्स ने प्रेमी प्रेमिकाओ को एक space दिया है. आज़ादी दी है खुल के जीने और भावनाओ को व्यक्त करने की. कागस के ख़त जैसी बात ईमेल में नहीं लकिन सच ये है की ख़त वाले प्रेमी में ईमेल वाली बात नहीं. वो प्यार के कागस पे दिल की कलम से ख़त लिखा करता था और ये कम्भाकत दिल ही निचोड़ कर रख देता है. वो सौ बार जनम लेकर प्यार की कसम खता था और ये न तो कह सकते है और न तो sah सकते है इतने प्यार और वादों को. वो लिखा करते थे जो उनकी याद में और ये ऐसी emotional atyachar से तौबा कर लेने में ही अपनी bhalai समजते है. तब की प्रेमिकाए कहती थी सजन रे झूट मत बोलो और आज की हिम्मत तो धेकिये इनकी, कहती है तू साला कम से गया.
                कुछ भी हो देश, काल ,मौसम और चरित्र बदले है लकिन ये भावनाए आज भी वही है. पहले भी जमाना सितम धता था और ये चुपचाप सहेते थे आज की aaishyio को चाँद की चूड़िया पहनने, डार्लिंग के लिए बदनाम होने और किसी के hath न आने की हिम्मत इन ईमेल ने ही दी है. भावनाओ की खुशबु वही रहती है बस उहने व्यक्त करने और समजने के तरीके बदलते रहते है.   
                  

1 टिप्पणी:

  1. संध्या जी बधाई हो तो आब आपको पता चल गया होगा अपनी रचना छपने का क्या सुख होता है भले ही वो ब्लॉग पर क्यों न लिखते चलो बधाई

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