सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

mila jo khat muje!

.valentine डे हर बार की तरह आया और चला गया.. लेकिन मुझे मिला ख़त अब भी मेरी यादों में ताज़ा है. सुना था की प्यार में चाँद किसी को खुबसूरत लगता है तो कुछ को तनहा लगता है लेकिन  मुझे पहली बार चाँद मासूम दिखा. जिसमे कोई बनावटी पन नहीं था मै उस दिन उसके आर पार देख सकती थी कितनो को ही कहते सुना था .. सच्चे प्यार की कोई परिभाषा नहीं होती, उसे शब्दों में  व्यक्त नहीं किया जा सकता आज देख भी लिया. साथ साथ ये भी समझ गई की valentine डे सिर्फ  दो प्यार करने वालों का त्यौहार नहीं है बल्कि ये उस हर इंसान के लिए है जो किसी दुसरे के प्रति आदर, लगाव और प्यार रखता है. ये माता पिता भी होसकते है , भाईबहन, दोस्त और जानवर भी. इनसबको किसी न किसी रूप में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ापाते हैं.
 -ख़त जो मुझे मिला 
 अगर सभी प्रेम पुजारी बन जाए तो किसी धरमपुजारी की जरुरत हमे कभी नहीं पड़ेगी. बताती चलूँ की ये ख़त मुझे पांच साल के नन्हे से बच्चे से मिला है जिसने सिर्फ कुछ लकीरों से वो सब कह दिया जिसे लोग पता नहीं कितनी राते सोचने और रिहर्सल करने में बिता देते है. इसमें कोई बनावटीपन नहीं है, मन की सच्ची भावनाएं छिपी हुई है ये किसी reply की मांग नहीं करती बस  देती रहती है. हमारे यहाँ प्रेम का रिश्ता बहुत पुराना है .. सूरदास को कृष्ण की परछाई से प्रेम था, रहीम को ब्रिज की उस हर चीज से जो कृष्ण से जुडी थी, कबीर सतगुरु प्रेम में भीग चुके थे तो मीरा को उनके विरह  से ही प्रेम था. किसी को प्रेम दया और क्षमा  करना सिखाता है .. जिसमे इंसान के सात खून माफ़ कर दी जाते हैं कुछ को ये इमली से खट्टा लगा तो किसी को मिश्री से भी मीठा. सूफी संतों ने खुदा की मौसिक़ी में दीन को ही भुला दिया. हम कह सकते है  "जाकी रही भावना जैसी प्रेम की मूरत तिन देखि तैसी ". प्यार में वो ताकत है जो पूरी दुनिया को एक कर दे प्रेम की गली इतनी बड़ी हो जिसमे पूरी दुनिया समाजाए और दुनिया की सारी परेशानियां बिना खून बहाए ही खत्म होजाए बशर्ते ये प्यार बचपन के प्यार की ही तरह मासूम बना रहे. 

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