चवन्नी तुम बहुत याद आओगी
आज चवन्नी छाप लेख लिखने का मन कर रहा है . जब मैं चवन्नी भर की थी , तो पापा से बस चवन्नी माँगा करती थी ,न इससे कम - न इससे ज्यादा पर राज़ी होती थी . चवन्नी की कम्पट भी मिल जाया करती थी और चूरन की पुड़िया भी . चवन्नी न मिले तो मज़ाल थी कि स्कूल चली जाऊं . जब से पता चला है कि सरकार ने चवन्नी को बाज़ार से वापस ले लिया है , चवन्नी पर टिकी मेरी यादें धुंधली पड़ने लगी हैं . इससे पहले कि ये पूरी तरह से मिट जाएँ ; सोचा क्यों न इस पर कुछ लिखकर चवन्नी के इतिहास का हिस्सा बन जाया जाये .
चवन्नी तुम्हारे जाने पर मुझे बहुत ज्यादा हैरानी नहीं हुयी , तुम्हे तो एक दिन जाना ही था . जैसे दिल्ली जैसे शहरों में चवन्नी की हैसियत वाले लोगों की कोई जगह नहीं . सरकारी योजनाओं में इन्हें चवन्नी भर की जगह भी नहीं मिलती . घोटाले भी हजारों -करोड़ों में हो रहे हैं . चवन्नी के घोटाले कोई करता नहीं , इसलिए लोगो को बड़ी चीज़े ही याद रह गयीं . तुम्हारे जाने का अगर किसी पर असर हुआ है तो वो मंदिरों के सामने बैठे भिखारी हैं . चवन्नी जब तुम थीं तो लोग चवन्नी इसी लिए रखा करते थे . दान - पुण्य का बहीखाता भी चालू रहे साथ में हर्र लगे न फिटकरी और रंग भी चोखा आता था . संसद में नेता जिस चवन्नीपने पर उतर आते हैं , उनके लिए आम आदमी से जुड़ने का एक जरिया तुम ही तो थी . तुम अगर सड़क पर पड़ी हुयी होगी तो तुम्हे कोई उठाएगा भी नहीं , जैसे मथुरा - वृन्दावन में कमाऊ बेटे, चवन्नी की गति पा चुके अपने मां -बाप को नहीं पूछते . अगर बहू दहेज़ में चवन्नी लाये तो उसका क्या होगा ? इसलिए तुम्हारा जाना ठीक भी रहा . न रहे बांस ; और न बजे बांसुरी . छोटी चीज़ों की समाज में कोई इज्ज़त नहीं . चाहे फिर वो तुम हो या आम आदमी . वो इस व्यवस्था में गाली हैं . इसलिए तो तुम भी चवन्नी छाप कहलाई . चवन्नी कहीं की .
जो कुछ भी हो चवन्नी जी , आपके लिए मेरे मन उतनी ही इज्ज़त है . आखिर आपके दम पर ही तो मैं दोस्तों से चवन्नी की शर्त लगाया करती थी . स्कूल के रास्ते में पड़ने वाले मंदिर में चवन्नी चढ़ाकर ही पिटने से बच जाया करती थी और वापस लौटने पर उठा लिया करती थी . उपरवाले को गोली टिकाना की हिम्मत तुम्ही ने तो दी थी . लेकिन इसका दोषी तुम खुद को कतई मत मानना .वो गलती उस उपरवाले की थी . उसे अपनी दुकान में 'चढ़ा हुआ माल वापस नहीं होता ' का साईन-बोर्ड लगाना चाहिए था . सुना है कि तुम्हारी बड़ी बहन अठन्नी भी जाने वाली हैं . मैंने अभी से तुम्हे और तुम्हारी बहन को संजो कर रखना शुरू कर दिया है . जब - जब अपने बचपन को याद करूंगी - गाँव की चकरोट पर गिल्ली -डंडा , छुप -छुप के नौटंकी देखने जाना , चिड़ियों के पंख इकट्ठे करना , बाग से अमरुद की चोरी करना और फिर पकडे जाने पर मिली पिटाई के साथ - साथ चवन्नी तुम भी बहुत याद आओगी .
BHUT ACHA LIKHA HAI.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दर्शन अच्छा लेख आनंद आया पढकर
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