सोमवार, 21 मार्च 2011


सोचती हूँ जब तुम जिंदगी में आओगे 
पूछेगा कोई तो क्या बताओगे 

दावा करना न मुझको समझ लेने का ,
वरना खुद को भंवर में फंसा पाओगे ,
दोष देना न मुझको, कुछ न बताने का
महसूस  कर के तो देखो  
हर शब्द में अपनी ही झलक पाओगे
सोचती हूँ जब तुम जिंदगी में आओगे 
पूछेगा कोई तो क्या बताओगे 

उम्मी हूँ मैं दुनियादारी में  
क्या इस सच को झुठला पाओगे
नज़र भर के देखने की मुझे
कोशिश न करना कभी
हर बार एक नयी शक्ल पाओगे
सोचती हूँ जब तुम जिंदगी में आओगे 
पूछेगा कोई तो क्या बताओगे 

तोड़ने की आदत है मेरी रस्मो रवाज़ों  को
साथ खड़े होने की रस्म निभाओगे  ?
कर के  मेरी  गलतियों  को नज़रंदाज़ 
ग्यारहवें बेटे क्या मेरे बन पाओगे
तैयार बैठी हूँ कब से, सूरज बन के चमकने को
चाँद बन के मेरा कहीं तुम तो न शरमाओगे ?
सोचती हूँ जब तुम जिंदगी में आओगे 
पूछेगा कोई तो क्या बताओगे 

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