रविवार, 27 मार्च 2011


                                          अजनबी नहीं कोई इस शहर में.................
 'हिंदी के मशहूर घुमंतू लेखक राहुल सांस्कृत्यायन कहा करते थे कि भले ही आपको किताबी ज्ञान न हो लेकिन अगर आप फक्कड़ी जीवन जीने में विश्वास रखते हैं , तो दुनिया भर का ज्ञान आपके पास होगा'. जिस लखनऊ  शहर में पैदा हुए , जब उसी शहर को घूमने के इरादे से से निकले तो सब अजनबी सा पाया. जो चीज़ें रोज़ नज़रों के सामने से बस यूँ ही निकल जाया करती थीं आज वो सब खास लग रही थीं. ऐसा लग रहा था कि रात कोई सपना देखा था और जो याद नहीं है. कैसा लगा मुझे तहजीब का शहर लखनऊ? मेरी नज़र से-

 सुबह घर से लखनऊ भ्रमण पर निकली. घर में सभी ने कहा यहाँ क्या देखने लायक क्या है? अक्सर हम घूमने के नाम पर सिर्फ मंदिरों में जाया करते हैं, लेकिन मैंने गांठ बांध ली थी कि कुछ भी हो आज सिर्फ घूमने के लिए जाउंगी. बख्शी का तालाब जो लखनऊ के लगभग दुसरे छोर पर है, कहा जाता है कि इसे राजा बख्शी ने बनवाया था. भारतीय संस्कृति में पानी पिलाना पुण्य का काम माना गया है और ये भारतीय संविधान में भी है कि पूरे भारत में किसी होटल में पानी का कोई अलग से पैसा नहीं पड़ेगा. इस तालाब को भी इसी उद्द्येश्य से बनवाया गया था. जानवरों के लिए एक पानी पीने के लिए एक अलग से रास्ता बनवाया गया था . सीढ़ियों से आप इस तालाब कि तली तक पहुँच सकते हैं, क्यांकि बाकी के तालाबों कि तरह ये भी अब सूख चुका है.
                                                                                       लखनवी तहजीब की झलक आपको इस शहर में कदम रखते ही देखने को मिलेगी. टैक्सी वाले आपसे पूछते हैं 'आइये कहाँ जायेंगी बैठिये'.यहाँ  बात आपसे शुरू होती है और हम पे ख़तम. लखनवी ज़ुबान आपको पहली नज़र में ही इस शहर का दीवाना बना देती है. ठीक आठ बजे हम सब टीले वाली मस्जिद में इकट्ठे हुए. यू.पी. के टूरिज्म विभाग की ओर से हमें लखनऊ भ्रमण का मौका मिला.हमारे गाईड आतिफ और नवेद ने हमें बताया की इसे नवाब आसिफ अली ने बनवाया था.गोमती नदी के ठीक किनारे स्थित ये मस्जिद उस जगह से ऊँचाई पर है ,इसीलिए इसे टीले वाली मस्जिद कहा गया. इसके अन्दर की दीवारों और छतों पर लाल- हरे रंग की पत्तियाँ उकेरी गयी हैं ,जो ईरानी -भारतीय स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना हैं .यहाँ पर हज़रत सैयद शाह की मन्नते पूरी करने  वाली दरगाह भी है. हालाँकि  गाईड इमरान हाश्मी की ज़िन्नों से जुडी बातें हमें महज़ किस्सागोई ही लगीं. हमने ये भी जाना की गोमती नदी मार्ग बदलती हुयी बहती है इसलिए इसे गोमती कहा गया. 
                                                                                       हमारा दूसरा पड़ाव बड़ा इमामबाडा था. इसके दरवाज़े इस तरह से बने हुए हैं की अन्दर बैठा व्यक्ति खुद तो अँधेरे में रहेगा लेकिन बाहर बाहर से आने वाले हर व्यक्ति पर  नज़र रख सकता है. इसके मुख्य द्वार पर हिन्दुओं में शुभ मानी जाने वाली मछलियाँ हैं और मस्जिद पर बने गुम्बद राजपूताना शैली में हैं.इस तरह से हिन्दू मुस्लिम एकता की मिसाल है. इमामबड़े से बाहर निकलते वक़्त मेरी नज़र इसके पीछे बनी झुग्गियों पर पड़ी.जो विलासिता और नवाबी शान की प्रतीक इस इमारत को मुंह चिढाती प्रतीत हो रही थी. थोड़ा और आगे बढने पर हमने देखा की एक व्यक्ति बिच्छू- सांप के काटने की दवाई बेंच रहा था.और लोग उसे विश्वास के साथ खरीद भी रहे थे.धरोहरों को संजो कर रखना तो ठीक है लेकिन इस सदी में इन नुस्खों से मर्ज़ ठीक होने की सोच से छुटकारा पा लेना ज़रूरी है. हमारे वेदों और समाज में सोमरस-पान की संस्कृति रही है.वक़्त के साथ तरीके अलग हो सकते हैं. यानि हम पहुँच गए थे लखनऊ की सौ साल पुरानी मशहूर 'राजा की ठंडाई की दूकान'  पर. यहाँ पर भांग वाली ठंडाई पीकर लोग लखनवी मिजाज़ के साथ लखनऊ की शामों का मज़ा लेते हैं. 
                                                                                'कितने नासमझ थे  हम जो पूरा मोहल्ला अपना समझते थे ;यहाँ तो हर घर की अलग कहानी निकली '. जब हम पुराने लखनऊ के टोलों की सैर पर निकले तो हर टोले का अपना इतिहास था. फूलों वाली गली, जिसमे गुलाब और बिजली के फूलों की हवा में फैली ख़ुशबू खुद ही अपनी पहचान बता रही थी. हमारे गाईड आतिफ ने हमें बताया कि यहाँ बने मकानों कि उपरी मंजिल पर मुज़रा करने वाली रहा करती थीं जहाँ लोग  वास्तव में तहजीब, उठने बैठने और बोलने के ढंग सीखने आया करते थे. आम भाषा में कहें तो इन तवायफों का कितना सम्मान था इस बात का अंदाजा इस बात से लगता है कि जब लोग इनकी महफ़िल में जाया करते थे तो फूल वाली गली से फूल लिया करते थे जो यहाँ के प्रसिद्ध मंदिरों में भी चढ़ते हैं. इसके अलावा हमने काले जी का राम मंदिर, शीतला मंदिर भी देखा.कटारी गली औजार बनाने के लिए प्रसिद्ध थी , जैसा कि नाम से ही ज़ाहिर है. नेपाली टोला में नेपाली मूल के लोग दुर्लभ जड़ीबूटियों का कारोबार करते हैं. एक और जो खास बात जो हमने जानी वो ये कि हर टोले के दो दरवाजे थे एक अन्दर आने का और टोला समाप्त होने पर दुसरे गेट से बंद होता था. हर टोले के घरों, दरवाज़ों और यहाँ तक कि तालों कि बनावट भी अलग थी. 
                                                             हमारा प्रमाणिक इतिहास आज़ादी के समय से ही मिलता है.  और आज़ादी कि महत्वपूर्ण लड़ाईयां लखनऊ शहर से भी लड़ी गयीं. फरंगी कोठी  आज़ादी के लिए हुयी बैठकों कि गवाह रही है.यहाँ रहने वाली नुसरत जी ने ने बताया कि गांधीजी, नेहरु और सरोजिनी नायडू ने भी इनमे हिस्सा लिया था. पश्चिम कि नक़ल करने में हमने अपनी कई चीज़ें यूँ ही गँवा दी , इसका जीता -जगता उदाहरण यूनानी  दवाखाना है.सरकार की कोई मदद न मिलने के कारण बदहाली कि क़गार पर है.इतना घूमने के बाद हमें ज़ोरों  कि भूक लग रही थी .जैसे ही हम असली लखनवी टुंडे कवाब और कुलचे वाली दूकान के पास पहुंचे हमारी भूख दोगुनी हो गयी. इस लज़ीज़ स्वाद के साथ ही हमारा लखनऊ भ्रमण पूरा हो गया. 
                                                                        ये लखनऊ कि सरज़मीं है. आप देश- देश घूमेंगे लेकिन लखनऊ आपको अजनबी नहीं लगेगा. यहाँ की चिकन- ज़रदोज़ी की कढाई को आप निहारे बिना रह नहीं रह सकेंगे तो दूसरी ओर तहजीब और नफासत ऐसी की गली भी लोग आप कहकर दे. यहाँ के खाने का स्वाद ऐसा की जब भी याद करे  तो मुंह में पानी आ जाये. इसलिए आप जब भी लखनऊ आयें तो खुद को एक अकेला  इस शहर में न समझें.                      






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