बुधवार, 30 मार्च 2011

लिखा था जो कुछ बेख़याली में, भूल कर उसको
ज़िदगी; पहले सा वो जुनून न मांग.
  
फ़ेर लेना  नज़र उस ओर से  
 किसी रोते हुए बच्चे की भूख न मांग, 
मोम की इन उँगलियों से,
चट्टान से शब्दों की हूक न मांग. 
ज़िन्दगी; पहले सा वो जुनून न मांग .

रख ले तू पूरी चांदनी आज की रात,
सूरज से उसके हिस्से की धूप न मांग ,
लग जाये मेरी सारी उमर तुझको;ग़म नहीं,
 मुझसे मेरा वज़ूद न मांग      
ज़िन्दगी वो पहले सा जुनून न मांग.

फिर छाएंगे रंग पेड़ों पर पतझड़ के बाद,
परिंदों से नयी शाख़ पर ठिकाना न मांग,
हालात कुछ भी हों डर नहीं,
कम से कम मुर्दों से,
मेरे जिंदा होने का सुबूत न मांग 
ज़िन्दगी वो पहले सा जुनून न मांग. 






































2 टिप्‍पणियां: