नशा इश्क का .............
जब दिन की सुध नहीं होती ,
न खबर रात की होती है,
पैर पड़ें न धरती पर,
तारों से बातें होती हैं,
जब नशा इश्क का चढ़ता है,
सारी दुनिया झूठी लगती है ,
परवाह होती बस उसी नशे की,
डूबके जिसमें उतराना होता है,
पा जाओ तो मंजिल बन जाती,
छूटे तो रेत का पानी कहलाता है,
जब नशा इश्क का चढ़ता है,
सारी दुनिया झूठी लगती है.
जिंदा रहकर ग़र इश्क करे तो,
मारे-मारे फिरना होता है,
ये कैसा सम्मान प्रेमियों का,
जीने- मरने की कसमें खाते हैं,
'ऑनर किलिंग' क्यूँ?
हिस्से में आती है,
जब नशा इश्क का चढ़ता ,
सारी दुनिया झूठी लगती है.
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