कांटे की नोक सी चुभती सर्द हवाएं,
वो ठंडक के दिनों की गुनगुनी धुप हूँ मैं,
नए सृजन की जो नींव रखी,
तुम्हारे घोंसले का पहला नीड़ हूँ मैं,
नंगे पांव टहलकर ज़रा महसूस करना,
मुलायम घास पर ओस की बूँद हूँ मैं,
बादल जब बरसकर चले कहीं और जायें,
पारिजात की कोपलों पर ठहरी बूँद हूँ मैं,
फेरकर हाथ देखो,
तुम्हारी ही तस्वीर पर वक़्त की धूल हूँ मैं,
टेबल पर पड़ी पुरानी डायरी में,
वो सूखा फूल हूँ मैं,
कंपकपाते होठों से तुम्हारे,
निकला गीत हूँ मैं,
जेठ की दोपहरी में,
थोड़ी सी छाँव हूँ मैं,
घाव दिखते नहीं पर,
तुम्हारे दर्द की वो पहली पीर हूँ मैं,
और क्या कहूं तुम्हें अब?
आंखें बंद करके सुनो तो,
तुम्हारी सांसों की मद्धमगूँज हूँ मैं,
देखो अब न कहना तुम................
की कौन हूँ मैं?