मंगलवार, 15 नवंबर 2011

कहूँ कैसे

बात दिल में जो थी
उसे कहूँ कैसे?

इरादा न था कोई 
बन गयी जो तस्वीर यूँ ही 
भरने को उसमें रंग 
वक़्त पर छोड़ दूं कैसे? 

नदी हूँ मिल जाना है 
एक दिन समंदर में ही 
थामने को उसको 
बांध मैं बनूँ कैसे?  

माफ़ करना हमसफ़र नहीं 
बन पाई हूँ अब तक
ख़ुशी जो तुझसे मिली 
दर्द उसको कहूँ कैसे ?

ख़त जो लिखा न कभी 
ढूंढकर पुरानी किताब से 
एहसास वो शब्दों के   
पढूं कैसे?

अनसुनी  धुनों से सजी 
नज़्म अधूरी ही है 
बिन बात के उसे 
लब गुनगुनाएं कैसे?


तमाशा कहती है दुनिया 
अक्सर संवेदनाओं को 
ढोंग शब्दों का रचकर 
कोई कविता फिर से 
लिखूं कैसे?

बात दिल में जो थी
कहूँ कैसे?                                             -संध्या


 
 

3 टिप्‍पणियां:

  1. तमाशा कहती है दुनिया
    अक्सर संवेदनाओं को
    ढोंग शब्दों का रचकर
    कोई कविता फिर से
    लिखूं कैसे?

    ...बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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