सोमवार, 5 दिसंबर 2011

ऊ ला ला

आज के यंगिस्तान की खसूसियत है कि वो अपनी रियल लाईफ और फैंटेसी के बीच ज़बरदस्त घालमेल बिठा लेते हैं.प्रेमचंद और शेक्सपियर भले ही उन पर कोई प्रभाव न डालते हों लेकिन फिल्में उनकी लाईफ स्टाईल बनती हैं.आज सरेराह एक लड़के को छिड़ते देखा. ये हाथभर लम्बे बालों वाला राकस्टार टाईप था. लडकियों का एक झुण्ड उसे देखते ही चिल्ला पड़ा ऊ ला ला......जो सीन क्रियेट हुआ घूंघट की आड़ से बस पूछो मत.
                                                                        सुना है मनमोहन और गिलानी फिर से कतियाँ करने वाले हैं.अरे ! ओई तो समझाओ हमारे ओवर शालीन पी.जी. को की पूछें पाक से कितने आदमी पकड़े 26/11 वाले हमले के. आकिर कब तक इन्साफ के लिए बसंती बनकर नाचेंगे अमेरिका के सामने.सीते जैसी जनता बेचारी अघा गयी है इन नेताओं से.चुनाव आते ही सपने दिखाते हैं 60 महीनों में 60 तरीके से विकास कराने के.लेकिन इहर कुछ समय से जनता में भी कोलावरी डी मचा हुआ है.इसी का नतीजा है कि बीच-बीच में सुखविंदर जैसे दबंग लोग नेताओं कि ढिंक चिका कर देते हैं और थप्पड़ की गूँज कानों में कम लोकतंत्र के चौथे खम्भे में ज्यादा सुनाई पड़ती है,जो इंटरटेनमेंट,इंटरटेनमेंट और सिर्फ इंटरटेनमेंट पर टिका हुआ है.उधर जब से सरकार ने एफडीआई का फैसला लिया है संसद में खूब छम्मक छल्लो हो रही है.विपक्ष ऊपर से चिल्लाता फिर रहा है..लागा रे लागा नमक  एफडीआई का.अब नमक लग भी रहा है तो हुआ सस्ता तो होगा न ऊ ला ला....सरकार तो बदनाम हो गयी न   एफडीआई तेरे लिए...अब ये लो! मंहगाई डायन से जवान हो गयी है और जवान ही रहेगी.आर्थिक नीतियां उसका बोटेक्स जो करती रहती हैं ना ऊ ला ला...चाईना को भी चैन नहीं पड़ रहा.कब से अपना राग अलाप रहा है दलाई लामा तू मुझको उधर दई दे और बदले में सिक्किम अरुणाचल लई ले...इससे ज्यादा की उम्मीद करना अपनी ही बेइज्जती ख़राब करना होगा.पर्यावरण चिंताओं पर दरबान में दुनिया भर के देशों का जमघट लगने वाला है.एक राज़ की बात बताऊँ मुझे तो लगता है कोपहेगन वार्ता की तरह ये भी ऐवें-ऐवें ही ना हो जाये क्योंकि विकासशील देश बेहिचक कह रहे साडा हक़ एत्थे रख.विकास से समझौता नहीं भले दुनिया इधर से उधर जाये ऊ ला ला...पिछले एक हफ्ते में दो शादियाँ अटेंड की.शादियों में दो चीज़े ही खास लगी मुझे.एक तो वो डांस बारात का.जो कभी नहीं नाचा होगा वो भी खूब पैसे बटोरता है न्योछावर में.क्या ताल से नाचते हैं की छज्जे पर कड़ी एक लड़की तो देखे उन्हें.वो बात और है की मेकअप तले आंटियों की उम्र भी पता नहीं चलती ऊ ला ला ....और दूसरा एक गाना जो हा बारात में बजता है ये देश है वीर जवानों का. आज तक नहीं समझ पाई इसे क्यूँ बजाया जाता है.लेकिन इन दो शादियाँ में मुझे खास बात ये लगी की इस गाने की जगह कोलावारी डी और वही वो वाला गाना बज रहा था अपना ऊ ला ला......अगर आपको मेरी बातें पसंद ना आयीं हो तो!!! तो क्या कमेन्ट करियेगा कोलावरी डी स्टाईल में ऊ ला ला.....     

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