सोमवार, 30 जनवरी 2012

आओ कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते

ग़म के आसुओं के रंग को 
उड़ जाने दो
थाम के हाथ एक दुसरे में 
खो जाने दो 
पैहरन के सब रंग फिज़ा में  
घुल जाने दो  
फिर से रंग दें कुछ नए पौधे 
आओ कोई ख्वाब बुने कल के वास्ते 

जाड़ों की धुप सी यादों में पका लें 
 ख़ुशी के सुनहरे धागे 
वक़्त की तकली 'पर  
नचायें  घुमाएं और मिट जायें 
आओ कोई ख्वाब बुने कल के वास्ते  

थाम कर नफरत की मशालें 
बस्तियां बहुत जलायीं
 मजहबों के नाम पर 
नींव कोई गहरी धरें दोस्ती के वास्ते 
आओ कोई ख्र्वाब बुने कल के वास्ते 

ये ज़मीं थी जो सरहदें तय कर लीं 
नदियाँ भी मोड़ दीं पर 
समंदर पे बस चले कहाँ 
आसमान की चादर तानें एक छत के वास्ते 
आओ कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते 

अब महल दुमहले लौटेंगे 
खंडहरों में वक़्त की चाल जानने 
गीली मिटटी है जोश हमारा 
आहिस्ता चाक घुमाओ नए सृजन के वास्ते 
आओ कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते 

पंख पसार दिए हैं मैंने 
सपनों के असीम गगन में 
हौसला तुम मेरा बनो उड़ान के वास्ते 
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते 

नैनों का ये अजब चलन है 
न कुछ तुम कहो 
चुप हम भी रहे परिचय के वास्ते 
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते 

जंग खा गयी ज़बान क्यूँ
माननीय बैठकों के फरमान पर
चलो हम तलवार बनें उस धार के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते


फासले हुए तो क्या
एक क़दम तुम चलो
एक क़दम हम चलें
और.........
जानकर लड़खडाएं एक दुसरे को थामने के वास्ते
आओ कोई ख़्वाब बुने कल के वास्ते


देशों के झगडे सुलझ रहे
विश्व की अदालत में
प्रेम पर कचहरी लगती
हमारी चाँद चौपालों में
उठे कि कोई ऊँगली जानिब हमारे
इससे पहले हम जवाब बनें उस सवाल के वास्ते
अओक कोई ख़्वाब बुनें कल के वास्ते - संध्या

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक सृजन, बधाई.

    कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

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