सोमवार, 28 मई 2012

अश्लीलता और श्लीलता के बीच का फर्क



पूनम पांडे,वीना मालिक, पाउली और ये वो नाम हैं जिनकी न तो शक्लें मिलती हैं  और न ही इनका आपस में कोई  रिश्ता है ;पर एक चीज जो इन चारों में कॉमन है वो है इनकी स्वयं तय की गयी श्लीलता..इन चारों ने सफलता के शिखर तक पहुँचने के लिए जो तरीका अपनाया है वो आसानी से गले उतरता  नहीं दिख रहा...पूनम पांडे; वीना मालिक और अब पाउली  डैम वैसे तीनों ने भारतीय दर्शकों मानसिकता  की नब्ज़ पकड़ी है. स्त्रीदेह हमेशा से ही हमारे समाज में चर्चा करने योग्य सर्वाधिक सुलभ विषय माना गया है.औरतें क्या पहनें, कितनी मात्रा में पहने,कितनी ढंकी और कितने इंच खुली रहे ये सभी विषय हमेशा से सामाजिक बतकूचन में शोध का विषय रहे है. पर दु:ख की बात यह है कि हम किसी नतीजे पर नहीं पहुँच पाए हैं .जो खुलापन अजंता एलोरा और दैवीय प्रतिमाओं के रूप में हमारी संस्कृति से मिला था उस सहेज कर न रख पाने का ही यह परिणाम है कि आज स्त्रीदेह को हम सहज तरीके से नहीं ले पा रहे. जब अजंता एलोरा की संस्कृति पर हम गर्व करते हैं तो क्यों पूनम और पाउली के नामों पर असहज होने लगते हैं. एक कहावत कही जाती है कि  स्त्री और धन छुपा कर रखने की चीज़ होती है. पर ये बात भी नहीं भूलने चाहिए कि स्त्री धन की तरह कोई खर्च करने की चीज़ भी नहीं है.और फिर हमने तो बाज़ारवाद को स्त्रीदेह का पूरक बनाकर रख दिया है.साबुन से लेकर शेविंग क्रीम तक का विज्ञापन कुछ भी बिना स्त्री के नहीं बिकता.अब तक स्त्री देह का प्रयोग जैसा बाज़ार चाहता था वैसा करता आ रहा था.ऐसे में अगर कुछ स्त्रियाँ अपनी देह पर अपना अधिकार चाहती हैं तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. श्लीलता और अश्लीलता के बीच बड़ी झीनी परत होती है, हमारी नजऱों की और मानसिकता की अगर ऐसा न होता तो कृष्णलीला के गुणगान न करते. कोई क्या पहन रहा है ये उसकी निजता के विषय होने चाहिए चर्चा का विषय नहीं. कम कपड़ों को लेकर दलील ये दी जाती है कि इससे रेप के मामले बढ़ते हैं.अगर ऐसा होता तो बूढी महिओलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार की घटनाएं नहीं होती.जहाँ चोली के पीछे क्या है, और खटिया सरकाने जैसे गाने साहित्यिक श्रेणी में आते हों और मजे की बात यह है कि पब्लिक उसे पसंद भी करती हो वहीँ ड्रेस कोड और डरती पिक्चर पर हाय तौबा मचाना नौटंकी लगता है.पर यह भी सच है कि खुलेपन का मतलब सिर्फ देहप्रदर्शन से नहीं लगाना चाहिए.खुलापन हमारी सोच और मानसिकता में होना चाहिए. जो समाज को वास्तव में कोई दिशा दे सके.