गुरुवार, 7 जून 2012

पहले बोरियां बनाइये फिर अनाज उगाइये


देश तमंचे खरीदने में लगा है. ए. के .सैतालिस बोर का तो कभी इत्ते बोर का को कभी उत्ते बोर का. रक्षामंत्री और प्रधान मंत्री के साथ साथ कृषि मंत्री जी को सनद रहे कि इस देश में बोर टाईप की ही एक और चीज़ की बड़ी सख्त ज़रूरत है और वो है बोरियों की. ऐसा नहीं है की देश में बोरिया उत्पादन की टेक्नोलॉजी नहीं है.घोटाले के रूपये भरने के लिए बोरियां हैं,मर्डर करके लाशे फेंकने के लिए हैं, पत्थर की मूर्तियों को ढंकने के लिए हैं, पडोसी देशों को निर्यात करने को हैं और जहाँ जहाँ बोरियों की अखिल भारतीय आवश्यकता है वहां बोरियों की कमी नहींपर अनाज भरने को बोरियों की कमती है इस देश में. किसान ने अपना कम कर दिया बिना फल की इच्छा किये. पर सरकारें जो हैं न ये तो सांस भी बिना मतलब के नहीं लेती हैं तो बोरियां कहाँ से देने लगी. सुनने .में तो ये भी आया है कि गेंहूं कि इस साल बंपर कचैंधर मची है जिसके कारण सरकार ने उसे निर्यात करने का निर्णय लिया है. मतलब अनाज रखने का जुगाड़ नहीं करेंगे पर बेंच देंगे.बंपर उत्पादन तो घोटालों,नेताओं और झूठे चुनावी वादों का भी होता है वो सब भी थोक में भेज दें. फिर भी न समझ आये तो चाईना से सस्ती टेकनीक वाले सस्ते बोरे ले लो. वो तो कबसे तैयार बैठा है लंगोट से लेकर बोरे तक से दुनिया भर कजे बाज़ार पाट देगा.रूस से बोरा टेकनीक लेने में थोडा पेंच फंस सकता है वो संयुक्त तकनीक से बोरिया उत्पादन करेगा और हमारे बोरिया वैज्ञानिकों के हाथ बस उसकी सिलाई लगेगी. या फिर बोरिया लीज पर देगा. ये मान के चलो कि सीधे सीधे कुछ नहीं देगा. अनाज पड़े  पड़े सड़ जाए, चूहे खा लें, किसानों को उसके दाम न मिले पर गरीबों में नहीं बाँट सकता है. बंटेगा तो गरीब कितने हैं ये भी पता चल जायेगा न.  तो कुल मिलकर सार यह है कि देश आतंकवाद, नक्सल,अशिक्षा,नेतागिरी और पडोसी देशों के साथ साथ बोरिया समस्या से भी जूझ रहा है.और ये समस्या राष्ट्रीय समस्या है क्यूंकि बीते दिन नहीं भूलने चाहिए जब हम अमरीका के सामने लबराते हुए ताका करते थे. हालत अब भी काफी हद तक वही है तब अनाज के लिए अटकते थे और अब हथियार और पकिस्तान कि कान खिंचाई के लीये.अगर बोरियों कि समस्या से ऐसे ही देश जूझता रहा तो एक विदेश नीति बनानी पड़ेगी बोरिया खरीदने की. जैसे अनाज की उत्पादन बढ़ने के लीये हरित क्रांति, दूध उत्पादन के लीये श्वेत क्रांति को पंचवर्षीय योजना के तहत चलाया गया अब  योजना बोरिया क्रांति का समय आ चुका है.पहले बोरिया उत्पादन  करो फिर अनाज उत्पादन.

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