बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

आओ परखें गांधी को



                                           

कहते हैं खुद को वक्त की कसौटी पर तौलते रहना चाहिए जिससे पता चलता रहे कि कौन कितने पानी में हैं। चूँकि हम भारतीयों में गर्व करने वाला सिंड्रोम बाकियों की अपेक्षा ज्यादा होता है इसीलिए ख्याल आया की क्यूँ न अपने गाँधी जी में कितना वजऩ बाकी है परख लें। अभी हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति ने गाँधी जी को फिर से याद किया है। म्यांमार की लोकप्रिय नेता सू की ने माना है कि गाँधी उन्हें प्रेरणा देते रहते हैं।अफ्रीका तो गाँधी जी का दूसरा घर रहा है।छोटा बच्चे के लिए गांधी नोटों पर छपे एक शख्स  हैं। युवाओं के लिए गांधी वो हैं जो किसी फिल्म में हीरो का ह्रदय परिवर्तन कर देते है। बुजुर्गों के लिए गांधी नास्टेल्जिया हैं। राजनीति में गाँधी एक एजेंडा हैं। अगर कुछ यूं कहें कि गांधी वह व्यक्तित्व है जो साल दर साल नए रूप धारण कर अपनी चमक बिखेरता है, ऐसा विचार है जिसे जिस बर्तन में डालो उसी का आकार ग्रहण कर लेता है और ये अहिंसा नाम की उस धातु से बना है जिसके लचीलेपन का कोई जवाब नहीं। जिसका जन्म तो ज्ञात है पर मृत्यु को लेकर संशय बरकऱार है जो आज भी जिंदा है। गांधी हमारी आजादी के निहत्थे योद्धा हैं। किसी के लिए गाँधी संत हैं,तो किसी के लिए महात्मा, गाँधी अहिंसा के पुजारी हैं, गाँधी चश्मा और खद्दरधारी हैं। रीढ़ से लचीला लेकिन सिद्धांतों के मामले में बेहद जिद्दी एक ऐसा आदमी जिसे कुछ प्रतीकों भर से पहचाना जा सकता है जिसे हर धर्म चहीता था फिर भी जीवन के अंतिम वक्त में जिनके मुंह से राम ही निकला था और इण्डिया के लिए गाँधी ब्रांड बन चुके हैं। कई बार दुविधा खड़ी हो जाती है कि गांधी हमारे हैं या हम गांधी के हैं। शायद आज गांधी हमारे लिए हथियार हैं कि सुनों हम गांधी के देश से हैं हमारी भी सुनो। इस महात्मा की प्रासंगिकता पर अक्सर बहसें होती हैं।इनके सिद्धांतों की शल्य क्रिया करना हमारा प्रिय शगल बन चुका है। इन्हीं के तरकश का एक तीर था जो आजकल अनशन के नाम से जाना जाता है जिसके बहाने हम कई निशाने साधते आये हैं। इन दिनों हमने अपनी सुविधानुसार गांधी का नवीनीकरण कर लिया है। कुछ साल पहले गांधी अपना बापू बन गए थे। आजकल जंतर मंतर पर डेरा जमाये हुए हैं। इस नए रूप में ढलने का काम अन्ना नामक उनके तथाकथित भक्त ने किया है। इस तरह से गांधी की एक और उपयोगिता सामने आई है। वे पब्लिसिटी स्टंट भी हो सकते हैं। जरा दिमाग पर जोर डालिए और सोचिये गांधी कहाँ-कहाँ विराजमान हैं। क्या आत्महत्या करते किसी किसान में, तहरीर चौक पे, म्यांमार की उस कोठरी में जहाँ अपनी आधी जि़ंदगी एक नेता ने नजऱबंदी में गुज़ार दी, किसी पांच सितारा होटल के पीछे बसी उन झुग्गियों में जो चाँद पे दाग सरीखी नजऱ आती हैं या फिर सिर्फ उस गाँधी टोपी में जो कभी-कभी मजबूरी में नजऱ आती है हमारे सिरों पर? बात सोचने वाली है जनाब आखिर गांधी नाम की सरकार है इस देश में। गाँधी हमारे बापू हैं, राष्ट्रपिता हैं। नोटों पर मुस्कुराते गांधी पर ही हमारे देश की अर्थव्यवस्था टिकी है।          -संध्या     

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