गुरुवार, 24 जनवरी 2013

बहुत बड़ी चीज़ मांग रही हूँ तुमसे
वचन दो कि तुम
हिम्मत रखोगी
बाकियों की तरह
कमज़ोर नहीं पड़ोगी
आत्महत्या कर दोगी
अपनी उस सोच का
जो कहती है कि
स्त्री की शुचिता उसकी देह से
जुड़ी है
बहुत मुश्किल है लेकिन फिर भी
उम्मीद है करती हूँ कि
तुम दोगुनी इच्छाशक्ति के साथ जियोगी
क्योंकि जी रही है
अरुणा शानबाग भी
तुम अपनी, उसकी और हम सबकी
लड़ाई लड़ोगी और पूछोगी
एक सवाल
कि आख़िर क्यों दिलवालों के शहर में
घूमते हैं कुछ लोग
पैरों में दिलों के जूते पहनकर
(दिल्ली मेँ गैंगरेप की शिकार उस लड़की के लिए)
-संध्या यादव

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