गुरुवार, 24 जनवरी 2013

ए दिल मेरे!बेवजह ही सही तू ज़िद तो कर
हम भी देखेंगे खील नसीब के कैसे होते हैं

जिन परिंदों ने खो दिए पंख उड़ान से पहले ही
खुले आसमान में उनके हौसले बड़े हसीन होते हैं

चुभन है कब्र में सोये उस बच्चे की आँखों में
बरसी साल दर साल जो नाकामी की मनाते हैं

सुना है काफी चल पड़े हैं मंजिल की तरफ़
ज़रा संभलकर सफ़र के हारे हुए रास्ता दिखाते हैं

हैरान क्यूँ है ये नए ज़माने का इश्क़ भला
किस्से मोहब्बत के कब दुनिया की नज़र में ज़हीन होते हैं

उनसे मिलना तो अच्छा है मगर ये भी हकीक़त है
जब फासले मीलों के हुए हम करीब उतने होते हैं
.............................संध्या यादव

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