गुरुवार, 24 जनवरी 2013

तुम

मेरे हर मौन में तुम
धड़कनों के नाद मेँ तुम
उनींदी रात में तुम
अनकही हर बात मेँ तुम
भाव में तुम
मेरे हठ में तुम
श्रृँगार में तुम
गालों के सुर्ख़ लाल में
तुम
साँसो के क़दमताल में तुम
पतझड़ की शाख़ मेँ तुम
वसंत के मेरे हर साल में तुम
अकेली याद में तुम
आँखों के इंतज़ार में तुम
सूनी सी भीड़ में तुम
चल पड़ूँ जिधर
उस राह में तुम
सपनों की तस्वीर में तुम
अनछुए स्पर्श में तुम
मेरे हिस्से की सुनहरी
धूप में तुम
पैरहन के मेरे हर
शोख़ रंग में तुम
कोरे क़ागज के शब्द में तुम
नज़रों के दूर क्षितिज में तुम
संन्यासी से मेरे मन मेँ तुम
मरघट के विलाप में तुम
सिर्फ तुम
सिर्फ तुम और
सिर्फ तुम
-संध्या (rashmi sharma जी की एक ख़ूबसूरत कविता को पढ़ते हुए)

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