गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

बाहर दालान में बैठे अगले छः जन्मों के प्राणनाथ जब 'सुनती होऽऽऽ' की हाँक लगाते हैं तो 'सुनती हो' सारा कुटना पीसना छोड़ छाड़कर साढ़े छः मीटर की साड़ी, डेढ़ हाथ का घूँघट, हाथों में पाँच दर्जन चूड़ियाँ, ढाई सौ ग्राम की पाजेब और न जाने क्या क्या पहने एक पैर पे चकरघिन्नी की तरह गिरती पड़ती दौड़ी चली आती हैं।बाहर वाले फलाने की दुलहिन और जब तरक्की हो जाये तो चुन्नू की महतारी हो जायें। लगता है जैसे 'सुनती हो' के माँ बाप ने उनका कोई नाम ही नहीं रखा कभी।

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