गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

बिटिया

सुनो.. कोई कुछ भी कहे

पर हम जानते हैं कि

आते ही वो भी रोयेगी

बेटों की तरह

लोहे का बर्तन नहीं बजवायेंगे

अपनी बिटिया के लिए

गुड़िया, छुटकी, रानी, सोना

नाम कोई भी रख देना

पर नींद नहीं आयेगी

सिंड्रेला स्नोव्हाइट की फंतासी सुनकर

उसके लिए हम मिलकर

कहानियाँ नये ज़माने की बुनेंगे

हमारे आंगन में कोई

दीवार नहीं होगी

जिसमें हमारी बिटिया बढ़ेगी

सपनों संग कदम्ब के पेड़ की तरह

हर जन्मदिन पर कुछ

गहने दिया करेंगे उपहार स्वरूप

दुलार, आत्मविश्वास...

जज़्बा और पंख देंगे सोलहवें बरस

ताकि दूर बहुत दृर उड़ सके

भर ले नील गगन को अपनी साँसों में

देहरी सा नहीं जड़ेंगे एक से दूसरे घर

तुम नींव हो हमारी

तुम्हारी मर्जी की हर ईंट चुनेंगे

और हां तुम मत घबराना

बेखौफ़ लक्ष्य साधकर कंचे खेलना,

जिंदगी से दौड़ लगाना

उम्मीदों के ताश फ़ेंटना

वक़्त की पतंग साधकर

हौसले के जाम लड़ाना

सुनो कोई कुछ भी कहे

पर हम बिटिया को बड़ा करेंगे

उसके "मैं" की तरह

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