गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

संस्मरण

पता नहीं आप सबने ये क़रतूत की है या नहीं पर मैंने तो ख़ूब की है। जब तक पेंसिल रबर वाले विद्यार्थी जीवन में थी दूध में पेंसिल का छिलका और आक़ के पत्तों का दूध मिलाकर लगभग हर रोज़ धूप में कुछ घंटों के लिए रखा करती थी और उसके बड़ी रबर में बदलने का किसी सांइटिस्ट की ख़ोज सरीखा इंतज़ार किया करती थी। ख़ैर रबर तो आजतक नहीं बनीं पर लगभग हर दिन मेरी तुड़ईया ज़रूर होती थी
.....एक ढीठ लड़की का संस्मरण से

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