मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

प्रेम तक पहुँचने का रास्ता भले ही एक हो पर उससे बाहर निकलने के सभी रास्ते युक्तियाँ खुले छोड़ दो बिना किसी ताले के। उसके बाद भी जो बचा रह जाये वही सच्चा प्रेम है। इसे कुछ गिने चुने अर्थों तक सीमित रखने के बजाय इसका स्वरूप इतना विस्तृत कर दिया जाना चाहिए कि कटुता की गुजांइश न रहे। कम से कम वे युवा प्रेमी जोड़े जो इसे धर्म मानते हैं एक नयी परिभाषा गढ़ सकते है जो कड़कती ठंड में सड़क किनारे पड़ी निर्भया या दामिनी को अपने गर्म कोटों और शालों से ढँकने की हिम्मत जुटा सके।
-संध्या

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें