मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

गणतंत्र दिवस पर

यहाँ इस वक़्त कोहरा बहुत है और गणतँत्र के निशान बहुत ढूँढने पर भी नहीं मिल रहे है।क्षणिक देशभक्ति की बदन में सनसनाहट पैदा करने वाला कोई गीत भी नहीं पर हाँ शिवालयों से भोर वंदन की धुनें बज रही हैं।साटन का झबला और कानों में ठंड से बचने के लिए कपड़ा बाँधे छोटी भारतमाता इंडिया मार्का हैंडपम्प से पानी भरने जा रही हैं। उसके घर रात की पतीली मांजने को पड़ी है और छोटा भईया के लिए आज उसे फूल की माला भी बनानी है। रोटियाँ भी सेंकनी होंगी क्योंकि आज वह लड्डू के लालच में गाँव वाले स्कूल जल्दी जायेगा। इस छोटी भारत माता के हिस्से का गणतँत्र पता नहीं कहां मुंह छिपाये बैठा है। शायद बड़ी सी पतीली में नन्हीं बाँहे डाले वो गणतंत्र ढूँढ रही है।और उसकी अम्मा दिन में खेत मालिक और रात में बापू की कुटाई से बेहाल खटिया पर मुँह छिपाये गणतंत्र की पीठ सहला रही है।महीने भर पहले बनी पक्की सड़क से गणतंत्र रोड़ियों और गिट्टियोँ की शक्ल में उधड़ गया है। आँगनबाड़ी के मिड डे मील की थाली में दाल के नाम पर गणतंत्र उतरा रहा है। ख़ैर आप सबको और छके पेट वालों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें