गुरुवार, 30 मई 2013

एक घर कच्ची दीवारों का .......न न कच्ची मिटटी का.....घास फूस का दरवाज़ा... ..दीवारें घेर दी गयीं गोबर, गेरू और चौलीठे से........... चूल्हे की आग, खाली पतीली से उफनाई दाल की महक....दिन भर धुप में खटते मुखिया के .......पसीने का नमक ...... ताख में सजा घरैतिन के सुहाग का सामान............... बेश क़ीमती साजो-सामान था उसमें................................. आज सूर्य ग्रहण था.

-संध्या

(चित्र गूगल गुरु से साभार)

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