सोमवार, 29 जुलाई 2013

गूलर के फूल

आज दरवाज़े पर दस्तक देकर 

एक और ख़त वापिस आया

शाम की केंचुल उतार 

आसमान रात हो गया 

जब नदी ब्रह्मकमल की तलाश में 

पहाड़- पहाड़ चढ़ी 

जब आसमान चमकीला और 

चाँद काला था 

जब मैनें तुम्हारी आँखों का 

नमक चखा 

उस दिन सच पूछो ........

मैंने गूलर के फूल चखे 

---------------------------------------संध्या

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