शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

मेरी कुछ हायकू रचनायें


बंद कर दी
डिबिया रंगों की? जान
थी उसमें
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पकड़ लाये
थे, जो तितली तुम
मैंने उड़ा दी
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आसमान ले
जाओ अपना लौटा दो
मेरी ज़मीन
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जानते तो थे
अब बताओ कहाँ
रखूं उदासी
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तुम गये तो
कमरा भर सांसें
उलझ गयीं
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मिलन! क्षण
विदा से पहले के
आसान नहीं
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गुपचुप ना
आया करो, सोचेगी
क्या तन्हाई
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आज ख़ुशी से
गले मिला, रीता जो
स्मृतिचिह्न
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सीमाएं देश
तो चलूँ? चौखट है
अपनी वहां
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फड़फड़ाये
पंख, उड़ा जो, टोबा
टेक सिंह था
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लड़ मरेंगे
ज़िंदा है धर्म, मुल्क़
मरता रहा
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क़िसान क़र्ज
श्रद्धांजलि में, मैंने
आज़ादी लिखी
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............................संध्या





















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