सोमवार, 12 अगस्त 2013

मैंने आसमान को ज़मीन कहा..... और जमीन को हौसला मेरा......ऊपर बढ़ना मेरी फ़ितरत न थी...जितना ऊपर बढ़ा .......उसके दोगुना जमीन में ......किसी की ज़िद है मुझे कतरते रहने की...और मेरी सनक जमीन में ऊंचा उठते रहना 

(शायद नयी उमर का जोश था ) 



-संध्या

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